मोहब्बत , हिज़र , ग़ुरबत , नफरत .... सब मिल चुके हैं मुझे ...
मैं अब तकरीबन मुकम्मल हो चूका हूँ ....!!!!
नवर्द - ऐ - इश्क में क्या हुआ क्या बताएं हम
कभी हमने खुद को ऐसे हारते नही देखा ....!!!!
उस ने ये सोचकर, अलविदा कह दिया हमें .....
ये गरीब लोग हैं , मोहब्बत के सिवा क्या देंगे ...???
वो रोज़ देखती है, डूबते हुए सूरज को...
काश हम भी किसी शाम के मंज़र होते...!!!!
नन्ही कलीये दुनिया फूलों की बगिया , इसमें तरह तरह के फूल खिले ,इन फूलों की महक बढाने , बन नन्ही कली मैं आयी हूँ ...!!!जब अंग्रेजों से लड़ना था , बन लक्ष्मी बाई मैं थी आयी ,अब गुंडों पर काबू पाने , मैं किरण बेदी बन आयी हूँ ...!!!जो कई नेता ना कर पाए , उन कामों का आगाज़ किया ,बन इन्दिरा कैसे राज़ किया, ये फिर बतलाने आयी हूँ ...!!!अब पहले जैसी नही रही , जो डरती और सकुचाती थी, अन्तरिक्ष में कल्पना जैसी , भरने उड़ान मैं आयी हूँ ...!!!बेटे ही होते हैं सब कुछ , जो माँ-बाप सोचते हैं ऐसा ,उनकी सोच की दिशा बदलने, इस दुनिया में मैं आयी हूँ..!!!कोख में मुझको मारने वाली, माँ ! तू अब तो होश में आ ,बेटी बनकर ही 'तू 'आयी थी , बेटी ही बनकर मैं आयी हूँ ..!!!ये दुनिया फूलों की बगिया, इसमें तरह तरह के फूल खिले,इस बगिया की महक बढाने, बन नन्ही कली मैं आयी हूँ ...!!! ---राकेश वर्मा
बदलते मायनेनया दौर आ गया है , नवरंग छा गया है ,जीवन की अदा बदली , आचरण बदल गया है ,अवशेष सभ्यता के , अब धू -धू कर जल रहे हैं ,हर शब्द के ही अब तो मायने बदल रहे हैं...!!!!अम्मा बन गयी है मम्मी , बाबू जी डैड हो गये हैं ,आंटी - अंकल के इस चलन में बुआ ताऊ खो गये हैं ,अध्यापिकाए बनी मैडम , गुरु सर बन के चल रहे हैं ,नित बदल रहे समाज में सम्बोधन बदल रहे हैं ....!!!!दशरथ तो बनना चाहें, श्रवण बनना नही गवारा ,अब जन्म देने वाले, हुए कई माँ-बाप बेसहारा ,गोदी में जिनकी खेले, वो वृद्द-आश्रम में पल रहे हैं ,पितृ भक्ति के भी आखिर, अब चलन बदल रहे है...!!!!रहे दूर के ना दर्शन , नज़दीक सब हैं आये ,प्रसारण भी उपग्रहों से, सीधा ही घर में धाये ,सौ -सौ रूपये में दो सौ, चैनल जो चल रहे हैं ,मनोरंजन व् ज्ञान के भी, अब साधन बदल रहे हैं...!!!!'बुनियाद' - 'तमस' - 'शान्ति', 'हम लोग' खो चुके हैं ,सर्वाधिकार-सुरक्षित, अब 'एकता' के हो चुके हैं ,कुछ ले चुकी प्रेरणा , कुछ के अरमां मचल रहे हैं ,'बालाजी' की कृपा से, अब रिश्ते बदल रहे हैं ...!!!!कोई बाबा करे योगासन, कोई बापू दे रहा भाषण ,कोई तंत्र सिखा रहा है, कोई 'जाम' पिला रहा है,गुरु-जनों का झंडा-डंडा, भक्त ले के चल रहे हैं ,धर्मगुरूओ की दीक्षा के, अब तरीके बदल रहे हैं...!!!!
हुई पंजाब की 'पंजाबी', और महाराष्ट्र की 'मराठी',कहीं 'अवधी' कहीं 'कालिंदी', पकड़ खो रही है 'हिंदी' ,अखंड राष्ट्र -भाषा के हिज्जे, अब खण्डों में ढल रहे हैं ,राजभाषा अधिनियम के, अब मायने बदल रहे हैं...!!!!नए शब्दों का करो सृजन परिभाषाएं नई बनाओ,निज भाषा व् संस्कृति की अस्मिता को तो बचाओ ,नवचेतना के दानव संस्कृति को निगल रहे हैं ,शब्दकोशों में संस्कृति के अब मायने बदल रहे हैं ...!!!!बदलाव ही है जीवन, तुम बदलो ज़रूर प्यारो ,आधुनिकता की होड़ में पर, विरासत को न बिसारो, राह जाएगी यह पतन को, हम जिसपे चल रहे हैं ,हर शब्द के ही अब तो मायने बदल रहे हैं ...!!!!हर शब्द के ही अब तो मायने बदल रहे हैं ...!!!!---राकेश वर्मा
सभी ब्लॉगर दोस्तों को बैसाखी पर्व की हार्दिक शुभकामनाये ....
इस बसंती रुत में हमे इक तुम ही न मिले वर्ना ...
फसलें भी लह-लहाकर गले लग लग के मिलती हैं ,,,!!!!