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शे'र अर्ज़ है :



जो होंगे तेरी तलाश में , आ जायेंगे खुद तेरे पीछे ,
राह-ए-मन्ज़िल में अपने, नक्श-ए-पाँ छोडते जाओ... !!


तंग-दस्ती के इस दौर में कोई राह नज़र आता नहीं है,
यही वजह है कि 'वर्मा' आज-कल मुस्कुराता नही है ...!!

शे'र

तेरी आँख का इक अश्क ही काफी था मेरे लिए,
मैंने डूबने के लिए सागर- ओ -मीना नहीं चाहा !!!


रानाई इस मौसम -ए - बरसात की तो देखो ,
जम के बरसा है उनसे बिछुड़ जाने के बाद !!!!

आत्मनिर्भरता

आत्मनिर्भरता

{गतांक से आगे }

अब प्रश्न यह है कि हम आत्मनिर्भर कैसे बने ?
तो इसका सीधा एवं सरल उत्तर है कि अपना काम खुद करके । बचपन से ही अगर हम आत्मनिर्भर होने की कोशिश करें तो कामयाबी के सोपान पर चढ़ सकते हैं । हमें बच्चों को समझाना चाहिए कि उन्हें जो भी गृह -कार्य मिले उसे स्वेयम करें ना कि किसी सहपाठी पर आश्रित रहें । घर में रहते हुए छोटे - छोटे कामों के लिए अपने माँ-बाप या बड़े भाई बहनों का मुहं ना देखें अपितु अपना काम स्वेयम करें । उदाहरण के लिए अपनी स्कूल की किताबों को व्यवस्थित ढंग से सहेज कर रखें । समय-सारिणी अनुसार उन्हें बस्ती में डाल कर रखें । सुबह स्कूल जाना है तो रात को अपना सारा सामान जैसे किताबें, वर्दी , जूते- जुराबें आदि यथास्थान रखें ताकि सुबह ना तो हड-बड़ी फैले और ना ही हमें किसी सहायता की आवश्यकता पड़े ।
बच्चों को बड़ों से सहयोग तो मिलता ही है , मार्गदर्शन भी मिलता है। माता पिता की बच्चों से बहुत उम्मीदें होती हैं। वे अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हैं । बच्चों को भी आत्मनिर्भर बनकर अपने कर्तव्य का निर्वाह करना चाहिए । बच्चे माँ-बाप के लिए सहारा बने ना कि बोझ । हम अगर आत्मनिर्भर नही होंगे तो किसी न किसी के लिए बोझ जरूर बनेंगे । अगर दूसरों पर आश्रित रहने की लत एक बार लग गयी तो सारी ज़िन्दगी यूँ ही निकल जाती है।
इन सबके इलावा आत्मनिर्भर न होना हमें कभी कभी उपहास का पात्र भी बना देता है । लोग-बाग़ देख कर हंसते हैं कि हम अपना काम स्वेयम करने में भी असमर्थ हैं । परजीवी व्यवहार वाला व्यक्ति किसी के मन को नही भाता । इसलिए आईये आज से ही आत्मनिर्भर होने की दिशा में कदम बढायें ।

आत्मनिर्भरता

आत्मनिर्भरता

मानव जीवन के विकास हेतु कई गुणों कि आवश्यकता होती है , आत्मनिर्भर होना इनमे विशेष स्थान रखता है । आत्मनिर्भरता का अर्थ है अपने काम स्वयम करने के काबिल होना । हम जो करें अपने बलबूते पर कर सकें न कि किसी पर आश्रित रहें ।
किसी भी देश जाति एवं धर्म की उन्नति के लिए उसके निवासियों का आत्मनिर्भर होना अति आवश्यक है । समाज की सबसे छोटी इकाई एक मानव है, अगर मानव आत्मनिर्भर होगा तो परिवार आत्मनिर्भर होगा , परिवार आत्मनिर्भर होगा तो समाज आत्मनिर्भर होगा, समाज आत्मनिर्भर होगा तो देश आत्मनिर्भर होगा ॥ यह एक स्थापित तथ्य है कि आत्मनिर्भर देश ही उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ता है । ........
[बाकी कल]

ब्लोग्वानी का लिंक

मैं अपने अज़ीज़ श्री ललित जी का तह-इ-दिल से शुक्रगुजार हूँ जिन्हों ने मेरा ब्लॉग ब्लोग्वानी पर register करने में महती भूमिका निभायी ...
श्रीमती निर्मला कपिला जी का हार्दिक आभार जिन्हों ने मार्गदर्शन किया ...

Couplet

ना आशुतोष ने कहा ,
ना भानिआरा वाले ने कहा ,
न सिरसे वाले ने कहा ,
ना गुरबानी कहती है के लड़ो ,
फ़िर भी दुनिया लड़े जा रही है ,
यह सच है दोस्तों ....

इन सब के पीछे ....
"गोलक" मंद-मंद मुस्कुरा रही है... !!!

Couplet

"कल की खबर किसे है, आज भी वो अनजान हैं हमसे ,
खुदा को न जाने मंज़ूर क्या है, यही सोच कर परेशान हैं कबसे "

ये शे'र मेरे अज़ीज़ दोस्त श्री संजीव कुरालिया जी ने मुझे कल भेजा था...

COUPLET

आज के लिए एक शे'र आपकी खिदमत में पेश कर रहा हूँ.. :

"तेरी आँख का इक अश्क ही , काफी है मेरे लिए... ,
मैंने डूबने के लिए , सागर-ओ- मीना नही चाहा... !!!"

दोस्तों....!
मुझे आज कल समय कम मिलता है इसलिए ब्लॉग पे कम लिखा  जा रहा है...
एक तो मेरी  शिफ्ट की ड्यूटी ऊपर से  आज-कल बच्चों के एक्साम चल रहे हैं...
इन सबसे फुर्सत मिलते ही अपनी जिंदगी के कुछ अन्य पहलुओं एवं अपनी कुछ  और रचनाये आपके साथ साँझा करूँगा...!!!
----- राकेश वर्मा

GHAZAL

                          ग़ज़ल

हैं मुन्तज़िर ये आँखें, तेरी दीद के जलवे की,
ए वादाकश कभी तो, वादा निभाया होता...!!

महक उठती ये फिजायें, हर-सू तेरी आमद से,
गुल बनके तू चमन  में, गर मुस्कुराया  होता....!!

कासिद के सामने यूँ , न ज़लील होते हम भी ,
ख़त के जवाब में गर, ख़त तेरा आया होता...!!

चाँद लम्हों की नवाजिश, कर देते अगर हम पे ,
ये दौर ज़िन्दगी का, यूँ तो न जाया होता ...!!

तेरी गैर हाजिरी से , बे-रौनक रही ये महफ़िल, 
जरा खुश-गवार इसकोआकर बनाया  होता ..!!  

वादे पे वफ़ा कर के, आ जाते अगर 'वर्मा',
रकीबों ने तंज़ कसके, हमे न रुलाया होता ...!! 

ग़ज़ल

ग़ज़ल
फ़िर आई उसकी याद, कल रात चुपके-चुपके..,
बहके मेरे जज़्बात , कल रात चुपके-चुपके...!!

दीवानावार हो के , हमने बहाए आंसू ...,
रोई ये कायनात , कल रात चुपके-चुपके...!!

मेरी आंखे हुई पुरनम , उनके दिए अश्कों से...,
ये लाये वो सौगात , कल रात चुपके-चुपके...!!

शह देते रहे हमको, दिखला के हुस्न का ज़लवा...,
फ़िर खायी हमने मात, कल रात चुपके-चुपके...!!

मेरी बेबसी का मंज़र , नही देख पाया वो भी...,
रोया था माहताब , कल रात चुपके - चुपके...!!

रौशन थे जो बरसों से, तेरे वादे की लौ से 'वर्मा'...,
गुल हो गये चिराग, कल रात चुपके-चुपके...!!

My First Post

सभी ब्लॉगर दोस्तों को मेरा सादर नमस्कार......!
मैं राकेश वर्मा पंजाब के एक शहर नया नंगल से ताल्लुक रखता हूँ॥
कविता लिखना मेरा शौक है और मैं हिन्दी एवं पंजाबी दोनों भाषाओं में लिखने की कोशिश करता हूँ ।
आज के बाद मैं अपनी कुछ रचनाएं आप सब के सन्मुख रखूँगा .....
तो.... इंतज़ार कीजिये ....
----- राकेश वर्मा