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GHAZAL

                          ग़ज़ल

हैं मुन्तज़िर ये आँखें, तेरी दीद के जलवे की,
ए वादाकश कभी तो, वादा निभाया होता...!!

महक उठती ये फिजायें, हर-सू तेरी आमद से,
गुल बनके तू चमन  में, गर मुस्कुराया  होता....!!

कासिद के सामने यूँ , न ज़लील होते हम भी ,
ख़त के जवाब में गर, ख़त तेरा आया होता...!!

चाँद लम्हों की नवाजिश, कर देते अगर हम पे ,
ये दौर ज़िन्दगी का, यूँ तो न जाया होता ...!!

तेरी गैर हाजिरी से , बे-रौनक रही ये महफ़िल, 
जरा खुश-गवार इसकोआकर बनाया  होता ..!!  

वादे पे वफ़ा कर के, आ जाते अगर 'वर्मा',
रकीबों ने तंज़ कसके, हमे न रुलाया होता ...!!