बिना मतले की ग़ज़ल ...
***** ज़िंदगी *****
क़ुछ रंग शोख से हैं , क़ुछ रंग रंजो -गम के ,
तस्वीर हो रही है , साकार ज़िन्दगी की ..!
कहीं महक है गुलों की, कांटों की चुभन भी है ,
मिलती नहीं हैं राहें , हमवार ज़िन्दगी की ...!
खुशीयों की खनक इस में, ग़म का संगीत भी है,
धुन अलग-अलग बज़ाती, झंकार ज़िन्दगी की !
अम्रुत से भरी बून्दें, कभी विष-वमन ये करती,
बह्ती ही जा रही है, रस- धार ज़िन्दगी की ..!
दरिया में है रवानी, अभी दूर है किनारा ,
जाने किधर ले जाये , पतवार ज़िन्दगी की !
कुछ कदम लडखडाये, बना बे-बसी का आलम,
थम सी गयी है ' वर्मा ', रफ्तार ज़िन्दगी की ..!!
----- राकेश वर्मा
{ 28-04-2011}
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