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GHAZAL

                          ग़ज़ल

हैं मुन्तज़िर ये आँखें, तेरी दीद के जलवे की,
ए वादाकश कभी तो, वादा निभाया होता...!!

महक उठती ये फिजायें, हर-सू तेरी आमद से,
गुल बनके तू चमन  में, गर मुस्कुराया  होता....!!

कासिद के सामने यूँ , न ज़लील होते हम भी ,
ख़त के जवाब में गर, ख़त तेरा आया होता...!!

चाँद लम्हों की नवाजिश, कर देते अगर हम पे ,
ये दौर ज़िन्दगी का, यूँ तो न जाया होता ...!!

तेरी गैर हाजिरी से , बे-रौनक रही ये महफ़िल, 
जरा खुश-गवार इसकोआकर बनाया  होता ..!!  

वादे पे वफ़ा कर के, आ जाते अगर 'वर्मा',
रकीबों ने तंज़ कसके, हमे न रुलाया होता ...!! 

ग़ज़ल

ग़ज़ल
फ़िर आई उसकी याद, कल रात चुपके-चुपके..,
बहके मेरे जज़्बात , कल रात चुपके-चुपके...!!

दीवानावार हो के , हमने बहाए आंसू ...,
रोई ये कायनात , कल रात चुपके-चुपके...!!

मेरी आंखे हुई पुरनम , उनके दिए अश्कों से...,
ये लाये वो सौगात , कल रात चुपके-चुपके...!!

शह देते रहे हमको, दिखला के हुस्न का ज़लवा...,
फ़िर खायी हमने मात, कल रात चुपके-चुपके...!!

मेरी बेबसी का मंज़र , नही देख पाया वो भी...,
रोया था माहताब , कल रात चुपके - चुपके...!!

रौशन थे जो बरसों से, तेरे वादे की लौ से 'वर्मा'...,
गुल हो गये चिराग, कल रात चुपके-चुपके...!!

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सभी ब्लॉगर दोस्तों को मेरा सादर नमस्कार......!
मैं राकेश वर्मा पंजाब के एक शहर नया नंगल से ताल्लुक रखता हूँ॥
कविता लिखना मेरा शौक है और मैं हिन्दी एवं पंजाबी दोनों भाषाओं में लिखने की कोशिश करता हूँ ।
आज के बाद मैं अपनी कुछ रचनाएं आप सब के सन्मुख रखूँगा .....
तो.... इंतज़ार कीजिये ....
----- राकेश वर्मा