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महिला दिवस

***** आधुनिका से *****

नारी ! तेरा स्व -रूप देखकर, होती है हमको हैरानी,
कहाँ गया आंचल का दूध , कहाँ गया आँखों का पानी ...

तेरे जन्म से पहले हमने , लाखों पापड़ बेले ,
कई तरह के टेस्ट कराए, कहीं तू जन्म लेले ,
पर इस दुनिया में आने की , थी तुमने पक्की ठानी .....

बचपन तेरा हमको भाया , पूरा हमने प्यार लुटाया,
लडकी होती धन पराया , यूँ हमने दिल को समझाया ,
जो भी माँगा वो दिलवाया, तेरी हर जिद हमने मानी...

जाने लगी थी फिर स्कूल तू , मन लगाकर रही तू पढ़ती ,
घर में अपनी माँ के साथ थी , उसके काम में मदद करती,
हो गयी यूँ सोलह बरस की , तुम पर भी गयी जवानी ....

अब तू घर में नही बैठती , नजर टी.वी. में जाती है,
रखना चाहिए जिनको ढककर, उन अंगों को दिखलाती है ,
शर्म--हया नारी का गहना , बस ये बात तुम ने जानी...

जब भी तेरी शादी की हमने, किसी लड़के संग बात चलायी,
-नुकर ही रही तू करती , कैरिएर की दे- देकर दुहाई ,
अपने सह कर्मी संग तुमने, बिन शादी रहने की ठानी ....

जो अपने थे वो दूर हो गये , सपने चकना-चूर हो गये,
आधुनिकता के थे जो पाले , मन के भ्रम सब दूर हो गये ,
जान गंवाई अपनी बन कर, कभी 'नताशा ' कभी 'शिवानी ' ...

झाड ले पल्ला आधुनिकता से, मेरी 'बिटिया '! मेरी 'बहना ' !
रास तुम्हे नही आई ये जरा भी , मान ले अब भी मेरा कहना ,
लौट ! रंग जा भारतीय रंग में ! तभी कहेंगे तम्हे सयानी ....

---- राकेश वर्मा

http://akhrandavanzara.blogspot.com

4 comments:

निर्मला कपिला said...

झाड ले पल्ला आधुनिकता से, ओ मेरी 'बिटिया '! ओ मेरी 'बहना ' !
रास तुम्हे नही आई ये जरा भी , मान ले अब भी मेरा कहना ,
लौट आ ! रंग जा भारतीय रंग में ! तभी कहेंगे तम्हे सयानी ....
वर्मा जी बहुत ही अच्छी कविता लिखी है आपने सही मी आज कल नारी उत्त्थान के लिये जितने प्रयत्न किये जा रहे हैं उसमे नारी की दशा और दिशा को शायद हमने नही समझा है केवल आधुनिक बन जाने को ही नरी स्वतन्त्रता का रूप मान लिया गया है। हर एक शब्द आज का सच कहता हुया प्रतीत हो रहा है। मै दो तीन दिन से दिल्ली गयी हुयी थी इस लिये आपकी पोस्ट नही देख पाई थी। आप सही मे बहुत अच्छा लिखते हैं अगली पोस्ट का इन्तज़ार रहेगा। धन्यवाद और शुभकामनायें

रानीविशाल said...

नारी से जुड़े हर पहलू को बखूबी उकेरा है आपने चाहे भावनाए हो या रिश्ते ,बहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना ...धन्यवाद !

शरद कोकास said...

"झाड ले पल्ला आधुनिकता से, ओ मेरी 'बिटिया '! ओ मेरी 'बहना ' "!
यह कहना तो ठीक है लेकिन स्त्री को विचारों से आधुनिक तो होना ही चाहिये ताकि यह बिटिया पढ़े -लिखे और अपने पैरों पर खड़ी हो सके , इस संसार में कठिनाइयों का मुकाबला कर सके , अत्याचारियों का दमन कर सके , शोषण का विरोध कर सके और अपने माँ बाप का नाम रोशन कर सके । इस बात में तो कोई मतभेद नहीं होना चाहिये ।

दीपक 'मशाल' said...

Koi kitni bhi mitane ki koshish kar le ye taqat mit nahin sakti..
kaha bhi gaya hai.. 'ek nahin do do matrayen.. nar se bhari nari...'