Pages

ग़ज़ल

ग़ज़ल

फ़कत मैं ही था तेरे जलवे से बेखबर.... ,
ज़िक्र जिस से भी किया तेरा दीवाना निकला !!

मरकज़ -ऐ - बज़्म ना बन सकी हमारी किस्सागोई ,
तेरा हर शे'र पक्का निशाना निकला ...!!

जाऊं सदके मैं तेरी सुखनवरी के .....
तेरा हर बोल इक्क तराना निकला !!

साकी-ऐ-महफ़िल बने जब भी तुम....,
हाथ में हर शख्स के पैमाना निकला..!!

इस कद्र तेरे रंग में रंग गयी बस्ती... ,
हर इक मोड़ पर नया मैख़ाना निकला॥!!


मात खा गये हम पेशीनगोई में.... ,
तू आम शख्स नही, नूर-ऐ-ज़माना निकला ॥!!

---- राकेश वर्मा


3 comments:

दीपक 'मशाल' said...

Rakesh ji......... laga ki haan gazal likhi hai kisi ne.. waqai...

गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें....
जय हिंद... जय बुंदेलखंड...

निर्मला कपिला said...

kuch din se sabhee blogs par nahee jaa paayee aur ye umdaa gazal dekhane se rah gayee har ek sher laajavaab hai shubhakaamanayen

baljitgoli said...

khoobsurat ghazal...